“पोलाः बैलों के प्रति आभार और ग्रामीण संस्कृति का उत्सव”

“पोलाः बैलों के प्रति आभार और ग्रामीण संस्कृति का उत्सव” यह हमें सिखाता है कि सिर्फ़ इंसान ही नहीं, बल्कि पशु की मेहनत का भी सम्मान होना चाहिए । यह प्रमुख रूप से महाराष्ट्र का त्यौहार है। इसके अलावा यह त्यौहार मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और विदर्भ क्षेत्रो में भी मनाया जाता है ।

🤔 महाराष्ट्र में यह त्यौहार कब मनाया जाता है ?

महाराष्ट्र का यह प्रमुख त्योहार भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह प्रमुख रूप से किसानों का त्यौहार है। यह त्यौहार इस साल 22 अगस्त 2025 दिन शुक्रवार सुबह से शुरू होकर अगले दिन यानी 23 अगस्त 2025 दिन शनिवार तक मनाया जाएगा ।

क्या है इस त्यौहार की मुख्य बातें ?

1. इस दिन बैलों को अच्छे से नहलाकर सजाया जाता है , और उनके सिंगो में रंग लगाया जाता है ।

2. उन्हें नए मोरखा के साथ सजाया जाता है यह मोरखा उनके नाक में पहनाया जाता है । कई नई प्रकार की मलाई पहनाई जाती हैं जिससे बैल बहुत सुंदर दिखते हैं ।

3. पूजा के बाद बैलों को मैदान में ले जाया जाता है और उसे और उनका ढोल नगाड़ों के साथ जुलूस निकाला जाता है । जुलूस के समय तोरण लगाई जाती है ।

4. कई व्यक्ति और बच्चे लकड़ी और मिट्टी के बैल (चन्ना पोला) बनाकर उनकी पूजा करते है।

🌾 बैलों की पूजा क्या है?

👉 बैल की पूजा का अर्थ है किसान अपने खेत के साथी, मेहनत के सच्चे साथी — बैल — को भगवान की तरह मानकर उसकी सेवा, सजावट और आराधना करता है। यह त्यौहार किसानों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है क्योंकि बेल उनकी खेती का मुख्य साधन होते हैं । यह समय खरीफ की फसल की अच्छी वृद्धि और बारिश के मौसम के बीच का होता है ।

🐂 क्यों की जाती है बैल पूजा?

  1. मेहनत का सम्मान – बैल खेत जोतता है, हल चलाता है और किसान का मुख्य सहायक होता है।
  2. धार्मिक मान्यता – बैल को भगवान शिव के वाहन नंदी का प्रतीक माना गया है।
  3. प्रकृति का आभार – बैल धरती से जुड़ा है, इसलिए उसकी पूजा करना धरती माता को धन्यवाद देने जैसा है।
  4. सामाजिक संदेश – यह हमें सिखाता है कि सिर्फ़ इंसान ही नहीं, बल्कि पशु की मेहनत का भी सम्मान होना चाहिए।

विशेष महत्व

इस दिन बैल को परिवार का सदस्य माना जाता है।

माना जाता है कि बैल की पूजा करने से फसल अच्छी होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

यह त्योहार किसानों के जीवन में खुशहाली और भाईचारे का प्रतीक है ।यह प्रकृति पशु और मानव के बीच संतुलन का प्रतीक भी है । आजकल शहरों में भी पोला त्यौहार सांस्कृतिक कार्यक्रम और ग्रामीण मेलों के रूप में भी मनाए जाने लगा है ।

इस दिन महाराष्ट्र का नागपुर में शराब की दुकान बंद रखी जाती है ताकि त्यौहार का माहौल शांति और अनुशासन से भरा रहे । सोशल मीडिया पर भी ग्रामीण इलाकों द्वारा खूब वीडियो वायरल और फोटो वायरल होती है । इस दिन बैलों को खास भजन पूरी खीर भजिए गुड़ चना आदि खिलाया जाता है ।

किसान हल, जुआ और कृषि उपकरणों की भी पूजा करते हैं ।

🖍️पोला पर्व पर कविता (“पोलाः बैलों के प्रति आभार और ग्रामीण संस्कृति का उत्सव”)

“पोला आया खेतों में”

पोला आया खेतों में खुशियां लाया गांव में,

सजे बैल रंग-बिरंगे ढोल बजाए ताव।

घंटिया छन-छन बजती रुनझुन करता राग,

किसान करें आभार प्रकट बैलों का ये त्याग ।

मिट्टी के बैल सजाते नन्हे नन्हें हाथ,

तानी पोला का उत्सव भर दे खुशियो की बात ।

खेत हल और मेहनत का सम्मान है ये दिन ,

पोला पर्व मना सब रखे संस्कृति को गिन ।

इस त्यौहार को मनाने का उद्देश्य हमारी संस्कृति को बचाए रखना है । हमारे आने वाली पीढ़ी याद रखें यह परंपरा को आगे चलाएं इस त्यौहार को याद रख सके यह त्योहार मध्य प्रदेश महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ कर्नाटक तमिलनाडु अन्य राज्य में धूमधाम और गाजे बाजे से मनाया जाता है यह त्यौहार आने से पहले इसका इंतजार किया जाता है ।

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