“15 अगस्त 2025 — नया भारत, नई उड़ान।” 🚀

15 अगस्त 2025 — नया भारत, नई उड़ान।” 15 अगस्त 1947 – वो रात जब भारत ने गुलामी की जंजीरें तोड़ीं और आज़ादी की कीमत खून, आंसू और बलिदान से चुकाई।”
“ये सिर्फ़ आज़ादी नहीं थी, ये करोड़ों शहीदों के लहू से लिखा हुआ इतिहास था।”


“आज़ादी @78: नया भारत, नई मंज़िल”

क्यों मनाया जाता है?

15 अगस्त वह दिन है जब भारत ने 200 साल से अधिक की अंग्रेज़ी गुलामी की बेड़ियां तोड़ीं और 1947 में आधी रात को आज़ादी की पहली सांस ली। यह सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं, बल्कि करोड़ों बलिदानों, संघर्षों और त्याग की परिणति है। यह वह दिन है जब देश ने अपने भाग्य का फैसला खुद करना शुरू किया, और “हम भारत के लोग” अपनी पहचान, अपने संविधान और अपने सपनों के मालिक बने।

इतिहास की गूंज:1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग़, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन तक, हर संघर्ष में लाखों वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए।भगत सिंह की फांसी, नेताजी का “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” का आह्वान, और गांधीजी का अहिंसा का मार्ग—इन सबने आज़ादी की ज्वाला जलाए रखी।15 अगस्त 1947 को पंडित नेहरू ने “नियति से साक्षात्कार” (Tryst with Destiny) भाषण में दुनिया को घोषणा दी कि भारत स्वतंत्र है।

इतिहास की गूंज: (“15 अगस्त 2025 — नया भारत, नई उड़ान।” 🚀)

1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग़, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन तक, हर संघर्ष में लाखों वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए।भगत सिंह की फांसी, नेताजी का “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” का आह्वान, और गांधीजी का अहिंसा का मार्ग—इन सबने आज़ादी की ज्वाला जलाए रखी।15 अगस्त 1947 को पंडित नेहरू ने “नियति से साक्षात्कार” (Tryst with Destiny) भाषण में दुनिया को घोषणा दी कि भारत स्वतंत्र है।

आज के भारत में महत्व:

यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी मुफ्त में नहीं मिली—यह लहू और आंसुओं से लिखी गई थी।यह हमें प्रेरित करता है कि हम भ्रष्टाचार, गरीबी और भेदभाव की बेड़ियां भी तोड़ें, ताकि असली स्वतंत्रता हर भारतीय तक पहुंचे।2025 में, “15 अगस्त 2025 — नया भारत, नई उड़ान।” 🚀 संकल्प, 78 वर्षों की उपलब्धियों और आने वाले भविष्य के विज़न का प्रतीक है।

15 अगस्त 1947 – वो रात जब भारत ने जंजीरें तोड़ीं अंग्रेज़ी साम्राज्य की 200 साल पुरानी जंजीरें…
लाखों लाशों के ढेर…
करोड़ों चीखें…
और एक लाल सूरज जो आज़ादी की पहली किरण लेकर आया।

उस दिन भारत एक साथ हंसा भी… और रोया भी।रात के ठीक 12 बजे दिल्ली की फिज़ाओं में एक अजीब खामोशी थी। संसद भवन के भीतर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने “नियति से साक्षात्कार” का भाषण दिया — और बाहर भीड़ में आंखों से आंसू बह रहे थे।भारत का तिरंगा पहली बार लाल किले पर लहराया, जैसे हवाएं भी कह रही हों — “हम आज़ाद हैं!”

लेकिन उसी समय, देश की सीमा पर बंटवारे का खून बह रहा था। ट्रेनें लाशों से भरी आ रही थीं, और पंजाब व बंगाल में हज़ारों गांव जलाए जा रहे थे।महात्मा गांधी इस जश्न से दूर, कलकत्ता की गलियों में दंगे रोकने में लगे थे, क्योंकि उन्हें पता था कि आज़ादी के साथ खून की होली भी खेली जा रही है।

खतरनाक सच्चाई:
आज़ादी एक सौगात थी… लेकिन इसकी कीमत इतनी डरावनी थी कि सुनकर रूह कांप जाए।करीब 10 लाख लोग बंटवारे में मारे गए।1.4 करोड़ लोग अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर हुए।औरतों के साथ अमानवीय हिंसा हुई, बच्चों को छीन लिया गया, और भाई-भाई दुश्मन बन गए।उस रात का मंजर:
लाल किले के नीचे भीड़ झूम रही थी, लेकिन सीमा पार से लपटें उठ रही थीं। कहीं “वंदे मातरम” गूंज रहा था, तो कहीं चीखें और गोलियों की आवाज़ें। यह आज़ादी थी — लेकिन खून से सनी हुई, दर्द से भरी हुई।

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