“हेल्थ स्मार्ट कार्ड: फायदे, पात्रता और बनाने की पूरी प्रक्रिया (ABHA ID)”

हेल्थ स्मार्ट कार्ड (ABHA ID) आपके मेडिकल रिकॉर्ड को सुरक्षित रखने वाला डिजिटल कार्ड है। जानिए “हेल्थ स्मार्ट कार्ड के फायदे, पात्रता और प्रक्रिया – ऑनलाइन व ऑफलाइन तरीके से। आयुष्मान भारत योजना व सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ लेने के लिए हेल्थ स्मार्ट कार्ड क्यों ज़रूरी है, यहां पढ़ें ।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड क्या है?”

हेल्थ स्मार्ट कार्ड एक डिजिटल हेल्थ आईडी कार्ड है, जिसमें किसी व्यक्ति की पूरी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी (Health Records) सुरक्षित रहती है। इसे आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के तहत शुरू किया गया है। इसमें एक यूनिक हेल्थ आईडी नंबर (ABHA ID) दिया जाता है, जिसके ज़रिए आपका मेडिकल डेटा देश के किसी भी अस्पताल या डॉक्टर तक पहुँचाया जा सकता हैं।

इसमें आपका ब्लड ग्रुप, बीमारी, इलाज, टेस्ट रिपोर्ट, दवाइयाँ, एलर्जी, टीकाकरण और हेल्थ इंश्योरेंस सबकुछ स्टोर रहता है। जब आप किसी भी अस्पताल में इलाज करवाने जाएंगे तो यह कार्ड दिखाने से डॉक्टर आपकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री देख सकते है।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड की ज़रूरत क्यों है?”हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवाने की प्रक्रिया”

वर्तमान समय में हेल्थ स्मार्ट कार्ड बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह आपकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री को डिजिटल रूप में सुरक्षित रखता है और सही समय पर सही इलाज दिलाने में मदद करता है।

• मुख्य कारण

1.मेडिकल रिकॉर्ड सुरक्षित और एक जगह पर रहता है।

2. आपको अलग-अलग फाइलें, रिपोर्ट या प्रिसक्रिप्शन लेकर घूमने की जरूरत नहीं है।

3. सारी जानकारी कार्ड में से रहती है।

एक्सीडेंट या अचानक होने वाली बीमारी में डॉक्टर को आपका ब्लड ग्रुप एलर्जी और पुरानी बीमारियों की जानकारी तुरंत मिल जाती है , इससे आपका इलाज जल्दी शुरू हो जाता है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाता है आयुष्मान भारत योजना जैसी हेल्थ स्कीम का फायदा उठाने के लिए हेल्थ स्मार्ट कार्ड उपयोगी होता है ।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड कहां से बनवाया जा सकता है

हेल्थ स्मार्ट कार्ड दोनों तरीके से बनवाया जा सकता है ऑफलाइन और ऑनलाइन ।

1. ऑनलाइन तरीका

aayushman Bharat digital mission पोर्टल

या आधिकारिक मोबाइल ऐप ABHA App या Aarogya Setu App

यहां पर आप आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस से रजिस्ट्रेशन करके तुरंत हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवा सकते हैं ।

2. ऑफलाइन तरीका

आप अपनी नजदीकी जगह पर जाकर भी हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवा सकते हैं । जैसे सरकारी अस्पताल, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर , प्राइमरी हेल्थ सेंटर , जन सेवा केंद्र, लोक सेवा केंद्र, आयुष्मान भारत योजना , से जुड़े अस्पताल आदि।

3. जरूरी डॉक्यूमेंट

आधार कार्ड / driving licence/ वोटर आईडी/ मोबाइल नंबर ओटीपी वेरिफिकेशन के लिए / फोटो

क्या हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवाना अनिवार्य है

नहीं , हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवाना अनिवार्य नहीं है। क्योंकि यह एक सुविधा है , जरूरत नहीं । सरकार (जैसे आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ आईडी) या कुछ राज्य सरकारें व निजी अस्पताल यह कार्ड उपलब्ध कराते हैं। जिसका उद्देश्य है कि आपकी सारी स्वास्थ्य जानकारी डिजिटल रूप में एक ही जगह सुरक्षित रहे और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर या अस्पताल तुरंत मिल सके ।

कार्ड ना बनवाने पर होने वाली समस्याएं

इलाज और अस्पताल सेवाएं पहले की तरह मिलती रहेगी । लेकिन आपकी मेडिकल हिस्ट्री या जानकारी एक जगह पर उपलब्ध नहीं मिलेगी । बीमा क्लेम सरकारी योजना में कभी-कभी देरी हो सकती है ।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड किन के लिए जरूरी है

• प्रत्येक नागरिक के लिए चाहे बुजुर्ग हो या बच्चा ।

• लंबी बीमारी वाले मरीजों के लिए ।

• इमरजेंसी केस वालों के लिए ।

• सरकारी हेल्थ योजनाओं का लाभ लेने वालों के लिए ।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवाने के फायदे

• सारे मेडिकल रिकॉर्ड जैसे रिपोर्ट , दवाइयां हिस्ट्री एक जगह पर सुरक्षित रहती है।

•इमरजेंसी में blood group , बीमारी की जानकारी तुरंत देने के लिए

•सरकारी योजनाओं का लाभ जैसे आयुष्मान भारत आदि का फायदा आसानी से मिल जाता है।

• बीमा क्लेम आसान – पारदर्शिता और तेज प्रक्रिया ।

• डॉक्टर – मरीज दोनों के लिए सुविधा ।

• यह कार्ड डिजिटल और सुरक्षित रहता है खोने का डर नहीं रहता ।

हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनवाने के लिए पात्रता क्या होनी चाहिए

1.ABHA Health ID

• भारत का नागरिक होना चाहिए ।

•किसी भी उम्र का व्यक्ति बनवा सकता है ।

•आधार कार्ड या मोबाइल नंबर होना चाहिए ।

2. आयुष्मान भारत card

• यह केवल गरीब एवं पात्र परिवारों को मिलता है ।

• केवल SECC-2011 (सामाजिक आर्थिक जनगणना 2011) की सूची में शामिल परिवार वालों के लिए ।

•ग्रामीण क्षेत्र में: कच्चा मकान, मजदूरी पर निर्भर, महिला मुखिया, SC/ST, भूमिहीन आदि ।

•शहरी क्षेत्र में: रिक्शा चालक, घर का काम करने वाले, निर्माण श्रमिक, ठेला चलाने वाले आदि

•सभी उम्र के लिए मान्य है ।

3.राज्य सरकारों के स्मार्ट हेल्थ कार्ड (जैसे Odisha, Chhattisgarh, आदि)

• •उस राज्य का निवासी होना ज़रूरी है।

•गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवार या राज्य सरकार द्वारा तय की गई श्रेणियाँ ।

•कुछ योजनाओं में सभी नागरिकों को भी शामिल किया गया है (जैसे ओडिशा का Biju Swasthya Kalyan Yojana Card)

क्या आधार मोबाइल से लिंक ना होने पर भी बन जाएगी हेल्थ स्मार्ट आईडी?

यदि लाभार्थी अपने आधार नंबर का विकल्प चुनता है, तो आधार से जुड़े मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी भेजा जाएगा. हालांकि, अगर उसने इसे अपने मोबाइल से लिंक नहीं किया है, तो लाभार्थी को निकटतम केंद्र पर जाना होगा और आधार संख्या का उपयोग करके बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन का विकल्प चुनना होगा. ऑथेंटिकेशन के बाद आधार नंबर से स्वास्थ्य आईडी मिल जाएगी ।

क्‍या हेल्‍थ स्मार्ट कार्ड बनने में लगने वाला डाटा सेफ है?

हेल्‍थ डाटा को लेकर NDHM का कहना है कि वह किसी भी व्यक्ति का हेल्‍थ रिकॉर्ड स्‍टोर करके नही रखता है. इसमें व्‍यक्ति का हेल्‍थ रिकॉर्ड हेल्‍थकेयर इन्‍फॉर्मेशन प्रोवाइर्स के पास ही उसकी रिटेंशन पॉलिसी के तहत स्‍टोर होता है। वह NDHM पर आपकी मंजूरी देने के बाद शेयर किया जाता है। आपकी अनुमति के कोई डाटा शेयर नहीं किया जाएगा. इस हेल्थ आईडी कार्ड के जरिए आपका डॉक्टर केवल एक बार आपका डाटा देख सकता है. अगर आप डॉक्‍टर के पास दोबारा जाते हैं, तो वह फिर से आपसे एक्‍सेस लेगा ।

लेवल जानकारी
कार्ड का नाम ABHA Health ID
उपलब्धता ऑनलाइन/ ऑफलाइन
बनवाने का तरीकाआधार या ओटीपी के माध्यम से
डाउनलोडआधिकारिक पोर्टल संबंधित ऐप के माध्यम से
शुल्क निशुल्क बनता है ।

“अभी अपना हेल्थ स्मार्ट कार्ड बनाएं”

abha.abdm.gov.in

कुछ अन्य FAQs

1.ABHA ID किस योजना के अंतर्गत जारी की जाती है ।

यह आइडी आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के अंतर्गत जारी की जाती है ।

2. आयुष्मान भारत योजना कब शुरू की गई थी ।

2018 मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ।

3.ABHA Card बनवाने के लिए किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है ।

आधार कार्ड /driving licence, मोबाइल नंबर ओटीपी के लिए और पासपोर्ट साइज फोटो ।

4. आयुष्मान भारत योजना का आधिकारिक नाम क्या है ।

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना

5.ABHA Health ID कितने अंको की होती है ।

14 अंको की।

6. आयुष्मान भारत योजना का स्लोगन क्या है ।

सेहत ही सबसे बड़ी दौलत है

7. आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से किन अस्पतालों में इलाज करवाया जा सकता है।

सभी empanelled सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में ।

“गाँवों में सुनने की समस्या और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर”

अक्सर गाँवों में सुनने की समस्या मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। “गाँवों में सुनने की समस्या और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर” जानें इसके कारण, प्रभाव, समस्या और समाधान।

गाँवों में अधिकतर लोग छोटी-छोटी बीमारियों को गंभीरता से नहीं लेते है, जब तक स्थिति बिगड़ न जाए, तब तक इलाज के लिए आगे नहीं बढ़ते। इन्हीं स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है सुनने की समस्या (Hearing Problem)। किसी भी व्यक्ति की सुनने की क्षमता कम होना सिर्फ शारीरिक परेशानी नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है।

खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सामाजिक संपर्क और परिवारिक रिश्ते मानसिक सुख-शांति का आधार होते हैं, वहाँ सुनने की समस्या व्यक्ति को अकेलापन, तनाव और अवसाद की ओर ले जा सकती है।

गाँवों में सुनने की समस्या अधिक क्यों होती है?

1. स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी – समय पर जांच और इलाज न मिल पाने से समस्या बढ़ जाती है।

2. जागरूकता की कमी – लोग सुनने की समस्या को सामान्य मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

3. उम्र बढ़ने का असर – ग्रामीण क्षेत्रों में बुज़ुर्गों की संख्या अधिक होती है और उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता कम होती है।

4. शोर प्रदूषण – खेतों में ट्रैक्टर, मशीनरी और गाँवों में तेज़ लाउडस्पीकर भी कानों को नुकसान पहुँचाते हैं।

5. संक्रमण और दवाइयों की कमी – कान के संक्रमण का समय पर इलाज न होने से सुनने की क्षमता कमजोर हो सकती है।

” गाँवों में सुनने की समस्या और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर”

सुनने की समस्या व्यक्ति को सिर्फ संवाद (Communication) से नहीं रोकती, बल्कि उसकी भावनात्मक और मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करती है।

1. अवसाद (Depression)

सुनने में कठिनाई होने से व्यक्ति सामाजिक मेल-जोल से दूर होने लगता है। यह अकेलापन धीरे-धीरे अवसाद में बदल सकता है।

2. तनाव (Stress)

जब व्यक्ति दूसरों की बातें बार-बार नहीं सुन पाता, तो उसमें चिड़चिड़ापन और तनाव बढ़ जाता है।

3. आत्मविश्वास में कमी

ग्रामीण समाज में सुनने की समस्या को अक्सर मज़ाक का विषय बना दिया जाता है, जिससे व्यक्ति का आत्मविश्वास घटता है।

4. स्मृति पर असर

कई शोध बताते हैं कि लंबे समय तक सुनने की समस्या रहने पर स्मृति और संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive Function) पर भी बुरा असर पड़ता है।

5. बच्चों पर प्रभाव

गाँवों में यदि बच्चों को सुनने की समस्या हो, तो उनकी पढ़ाई, भाषा सीखने की क्षमता और सामाजिक विकास प्रभावित होता है।

गाँवों में सुनने की समस्या की पहचान कैसे करें?

गाँवों में लोग अक्सर डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं। ऐसे में परिवार के लोग इन लक्षणों से पहचान सकते हैं:

टीवी या मोबाइल को तेज़ आवाज़ में सुनना।

बार-बार बात को दोहराने के लिए कहना।

समूह में बातचीत से बचना।

बुज़ुर्गों का बातचीत में भाग न लेना।

बच्चों का धीमी आवाज़ पर प्रतिक्रिया न करना।

सुनने की समस्या और मानसिक स्वास्थ्य की रोकथाम

1. समय पर जांच – प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कान की नियमित जांच करवानी चाहिए।

2. सुनने की मशीन (Hearing Aid) – यदि डॉक्टर सलाह दें, तो सुनने की मशीन का उपयोग करना चाहिए।

3. जागरूकता अभियान – गाँवों में जागरूकता शिविर लगाकर लोगों को समस्या और उसके समाधान के बारे में बताना।

4. योग और ध्यान – मानसिक तनाव कम करने के लिए योग और ध्यान लाभकारी हैं।

5. सामाजिक सहयोग – परिवार और समाज को सुनने की समस्या से जूझ रहे व्यक्ति को सहयोग और सहानुभूति देनी चाहिए।

6. सरकारी योजनाएँ – सरकार द्वारा दिव्यांगजन और बुज़ुर्गों के लिए कई योजनाएँ चल रही हैं जिनसे मुफ्त या सब्सिडी में हियरिंग एड मिल सकते हैं।

कुछ अन्य पूछे गए FAQs

Q1. गाँवों में सुनने की समस्या क्यों ज़्यादा होती है?

👉 गाँवों में स्वास्थ्य सुविधाओं और जागरूकता की कमी, संक्रमण का समय पर इलाज न होना और उम्र संबंधी कारणों से सुनने की समस्या अधिक पाई जाती है।

Q2. क्या सुनने की समस्या से अवसाद हो सकता है?

👉 हाँ, लगातार संवाद न कर पाने और अकेलेपन की वजह से व्यक्ति अवसाद (Depression) का शिकार हो सकता है।

Q3. बच्चों में सुनने की समस्या का क्या असर पड़ता है?

बच्चों की पढ़ाई, भाषा विकास और आत्मविश्वास पर सीधा असर पड़ता है।

Q4. बुज़ुर्गों में सुनने की कमजोरी का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है?

बुज़ुर्ग अक्सर अकेलापन महसूस करते हैं, जिससे तनाव और स्मृति कमजोर होने की समस्या हो सकती है।

Q5. गाँवों में सुनने की समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है?

जागरूकता अभियान, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जांच, सुनने की मशीन का इस्तेमाल और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष

गाँवों में सुनने की समस्या को सिर्फ शारीरिक बीमारी मानना सही नहीं है। यह मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन और परिवारिक रिश्तों पर गहरा असर डालती है। यदि समय रहते इस पर ध्यान दिया जाए तो न सिर्फ सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है बल्कि व्यक्ति के मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।गाँवों में ज़रूरत है कि इस समस्या को गंभीरता से लिया जाए और हर स्तर पर जागरूकता फैलाई जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति सिर्फ सुनने की कमी की वजह से समाज से अलग-थलग न हो।

जूतों से बदबू आए तो क्या करें

जूते से बदबू आना कोई साधारण समस्या नहीं है। आज हम जानेंगे “जूतों से बदबू आए तो क्या करें“इसके पीछे शरीर विज्ञान , पर्यावरण (Environment) और साफ-सफाई – तीनों के कारण यह सब होता है।

जूतों से बदबू आए तो क्या करें

1. बदबू आने का असली कारण

जूते हमारे जीवन का हिस्सा हैं। हम प्रतिदिन ऑफिस, स्कूल, कॉलेज, बाज़ार या किसी भी काम पर जाने के लिए और खेतों में जूतों की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन अक्सर यह समस्या हर किसी को परेशान करती है – जूते से आने वाली बदबू। यह बदबू न सिर्फ़ हमें असहज करती है बल्कि हमारे आत्मविश्वास (Confidence) को भी तोड़ देती है। जिससे कि अपने आप में अच्छा व्यतीत नहीं होता।

जब हम किसी मीटिंग या ऑफिस के कार्य में जाते हैं, या किसी दोस्त के घर गए हैं तो जैसे ही हम जूते उतारते है, तो अपनी नाक और दूसरों की नाक मैं गंध फैल जाती है सामने वाले लोग चेहरे पर मुस्कान से छुपा लेंते है लेकिन कुछ बोल नहीं पाते, क्योंकि माहौल असहज सा हो जाता है। यही कारण है कि इस समस्या को हल करना अत्यंत आवश्यक है।

2. जूतों से बदबू आखिर आती क्यों है?

जूतो से बदबू आना सिर्फ़ “पसीने” की वजह नहीं है, इसके पीछे कई कारण हैं जैसे –

🔥 मुख्य कारण

1. पसीना और नमी – पैरों में स्वेद ग्रंथियां (Sweat Glands) अधिक होती हैं, जब ये जूतों में बंद हो जाती हैं तो नमी पैदा करती है। और पसीना आता है जिससे कि नमी बनी रहती है और थोड़ी देर बाद भयंकर बदबू आने लगती है ।

2. बैक्टीरिया और फंगस – नम वातावरण बैक्टीरिया और फंगस के लिए उपयोगी होते है। यही सूक्ष्मजीव बदबूदार गैसें उत्पन्न करते हैं जोकि बदबू आने का कारण बनती हैं।

3. गंदे मोज़े – रोज़-रोज़ वही मोज़े पहनने से पसीना और बैक्टीरिया की वृद्धि हो जाती हैं और जमा होकर बदबू को बढ़ाते हैं।

4. सांस न लेने वाले जूते – सिंथेटिक लेदर के जूते हवा को पास नहीं होने देते, जिससे नमी बनी रहते है जिसके कारण बदबू आती है। कभी-कभी नकली लेदर जूतों में उपयोग किया जाता है जो भी बदबू आने का कारण बनता हैं।

5. साफ-सफाई की कमी – कभी-कभी हम लंबे समय तक जूतों को उपयोग में लेते रहते है और उनकी उपयुक्त साफ़ सफाई नहीं करते जिसके कारण जूतों में से बदबू आने लगती हैं।

6. पैरों की बीमारियाँ – कई व्यक्तियो को पैरों की बीमारियाँ जैसे फंगल इन्फेक्शन (Athlete’s Foot) जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं जिसके कारण जूतों से बदबू आती हैं।

यानी बदबू = पसीना + बैक्टीरिया + गंदगी का कॉम्बिनेशन जूतों से आने वाली बदबू का कारण।

3. कुछ घरेलू उपाय 👉 पावरफुल और असरदार

1. नींबू

यदि जूतों से बदबू आए तो जूते में नींबू का छिलका रख दीजिए, नींबू की ताजगी वाली खुशबू जूतों की बदबू को पलभर में सोख लेती है।

2. बेकिंग सोडा

जूतों की बदबू के लिए बेकिंग सोडा एक नैचुरल डिओड्रेंट है। बेकिंग सोडा का डिओड्रेंट रात को जूतों में छिड़क दें और सुबह झाड़ दें जिससे बदबू और नमी दोनों खत्म हो जाएगी।

3. टी-बैग ट्रिक

सुखा हुआ टी-बैग जूतों में डालने से यह नमी को खींच लेता है और ताजगी छोड़ता है जिससे जूतों की बदबू को खत्म किया जा सकता है।

🌞 4. धूप का असर

जूतों को अच्छे से धोकर धूप में अच्छी तरह से सूखना चाहिए। यह सबसे सस्ता असरदार तरीका है। सूरज की किरणें बैक्टीरिया को खत्म कर देती है जिससे जूतों में से बदबू आना बंद हो जाती हैं।

5. मोज़े

हमें हमेशा कॉटन के साफ मोज़े पहनेंने चाहिए। नायलॉन के मोज़े पसीना रोकते हैं और बदबू बढ़ाते हैं।

6. डिओड्रेंट ट्रिक

जूते पहनने से पहले पैरों पर हल्का डिओड्रेंट या टैल्कम पाउडर लगाएँ जिससे पसीना रुकेगा, और जूतो की बदबू नहीं आयेगी।

7. सिरके का करिश्मा

एक कपड़ा ले कपड़े को सिरके में भिगोकर जूते को अंदर से पोंछें क्योंकि सिरका बैक्टीरिया को मार देता है।

8. चारकोल

एक्टिवेटेड चारकोल को जूतों में रखें जिससे यह नमी और बदबू दोनों को खींच लेगा । जिससे जूतों की बदबू नहीं आयेगी।

🌿 9. लैवेंडर या नीम पत्ते

जूतो में नीम या लैवेंडर की पत्तियाँ डालें जिससे एंटीबैक्टीरियल और खुशबूदार असर होगा।

10. फ्रीज़र ट्रिक

जूते को पॉलिथिन में डालकर फ्रीज़र में कुछ घंटों के लिए रख सकते है जिससे ठंड से बैक्टीरिया मर जाएंगे जोकि बदबू आने का कारण होते है।

4. टेक्नोलॉजी की मदद से

1. एंटीबैक्टीरियल स्प्रे – बाजार में खास जूतों के स्प्रे आते हैं उनको उपयोग में ला सकते है।

2. शू डिओड्रेंट बॉल्स –ये छोटी – छोटी बॉल्स के रुप मे आते है जिन्हें जूतों के अंदर रखा जा सकता है।

3. सिलिका जेल पैक – सिलिका जेल नमी सोखने के लिए उपयोग की जाती हैं।

4. यूवी शू ड्रायर – ऐसे कुछ खास डिवाइस आते हैं जो यूवी लाइट से बैक्टीरिया मारते हैं। परंतु यह थोड़ा महंगा पड़ सकता है।

5. जूतो की बदबू को रोकने के लिए क्या क्या करे

1. रोज़ाना जूतों को हवा लगाएँ।

2. एक ही जूते रोज़ मत पहनें, बदल-बदलकर इस्तेमाल करें।

3. पैरों को रोज़ साबुन से धोएँ और सुखाएँ।

4. मोज़े कभी दोबारा बिना धोएं न पहनें।

5. पैरों की फंगल बीमारी का तुरंत इलाज करें।

6. जूतों की बदबू

कई लोग बदबू के डर से जूते उतारने से बचते हैं, जिससे आत्मविश्वास कम हो जाता है। लेकिन अगर आप ऊपर बताए नुस्खे अपनाते हैं, तो आप किसी भी जगह जूते उतार सकते हैं – मंदिर, घर, पार्टी कही भी वो भी बिना झिझक के। यही असली पावरफुल पर्सनालिटी है।

7. बदबू से आज़ादी 😊

जूतो की बदबू कोई छोटी समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी पर्सनालिटी और स्वास्थ दोनों को प्रभावित करती है। और हम कैसे व्यक्ति है इसका पता चलता है ।

अगर आप इन घरेलू नुस्खों और आधुनिक उपायों को अपनाते हैं, तो आपके जूते हमेशा इस तरह से रहेंगे 👇

• ताज़गी भरे

• बदबू से दूर

•आत्मविश्वास बढ़ाने वाले

“लिवर से जुड़ी 10 जरूरी बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए”🧐

लीवर (यकृत) हमारे शरीर का ऐसा अंग है जो एक सुपर-प्रोसेसर की तरह काम करता है — आइए जानते है “लिवर से जुड़ी 10 जरूरी बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए”

लीवर खराब होने के लक्षण – विस्तार से

लीवर हमारे शरीर का एक ऐसा अंग है जो बिना रुके 24 घंटे काम करता है। यह खून को साफ करता है, ज़रूरी प्रोटीन और एंज़ाइम बनाता है, पित्त (Bile) तैयार करता है और ऊर्जा को मैनेज करता है। लेकिन जब लीवर बीमार हो जाता है, तो उसका असर लगभग हर हिस्से पर दिखने लगता है।


“लिवर से जुड़ी 10 जरूरी बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए”

  1. लिवर का असली काम क्या है

लिवर शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है और इसका वजन लगभग 1.4 किलो होता है।
यह 500 से भी ज्यादा तरह के काम करता है, जैसे:

खून को फ़िल्टर करना

टॉक्सिन्स (जहर) को बाहर निकालना

पित्त (Bile) बनाना जो फैट को पचाने में मदद करता है

शरीर में ग्लूकोज़ स्टोर और रिलीज़ करना

प्रोटीन और कोलेस्ट्रॉल का निर्माण
लिवर के बिना शरीर कुछ ही दिनों में काम करना बंद कर देगा।


  1. लिवर खुद को रिपेयर कर सकता है

लिवर की खासियत है कि यह Regenerate यानी खुद को दोबारा ठीक कर सकता है।
अगर इसका 70% हिस्सा भी खराब हो जाए तो सही इलाज और जीवनशैली से यह वापस ठीक हो सकता है।
लेकिन लगातार नुकसान (जैसे शराब, ड्रग्स, वायरल इंफेक्शन) होने पर यह क्षमता कम हो जाती है।


  1. लिवर की बीमारियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं
  • अधिकतर लिवर की बीमारियां चुपचाप बढ़ती हैं।
  • शुरुआती स्टेज में कोई खास दर्द या लक्षण नहीं आते, इसलिए लोग लापरवाह रहते हैं।
  • ज्यादातर लोग तभी डॉक्टर के पास जाते हैं जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है।

  1. लिवर को नुकसान पहुँचाने वाले मुख्य कारण

शराब का अत्यधिक सेवन

हेपेटाइटिस वायरस (A, B, C, D, E)

ज्यादा फैटी और जंक फूड

अत्यधिक दवाइयाँ और स्टेरॉयड

मोटापा और डायबिटीज़

टॉक्सिन और केमिकल्स का संपर्क


  1. लिवर और फैटी लिवर डिज़ीज़

आजकल फैटी लिवर एक आम समस्या है।
यह दो तरह का होता है:

NAFLD (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) – शराब न पीने पर भी फैट जमा होना

AFLD (Alcoholic Fatty Liver Disease) – शराब के कारण फैट जमा होना
अगर समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह सिरोसिस या लिवर फेलियर में बदल सकता है।


  1. लिवर खराब होने के शुरुआती लक्षण

थकान और कमजोरी

पेट के दाईं ओर हल्का दर्द या भारीपन

पाचन में दिक्कत

वजन कम होना

हल्का बुखार
ये लक्षण अक्सर मामूली लगते हैं, लेकिन इन्हें नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है।


  1. लिवर की गंभीर बीमारी के लक्षण

पीलिया (Jaundice) – आंखों और त्वचा का पीला होना

पेट में पानी भरना (Ascites)

उल्टी या मल में खून आना

बार-बार उल्टी होना

पैरों में सूजन

मानसिक भ्रम (Hepatic Encephalopathy)
ये लक्षण आने का मतलब है कि लिवर की बीमारी एडवांस स्टेज में है।


  1. लिवर की जांच कैसे होती है

LFT (Liver Function Test) – खून में एंजाइम और बिलीरुबिन चेक करने के लिए

अल्ट्रासाउंड – फैटी लिवर या ट्यूमर का पता लगाने के लिए

Fibroscan – लिवर की कठोरता मापने के लिए

MRI / CT Scan – विस्तृत जांच के लिए

लिवर बायोप्सी – सबसे सटीक निदान के लिए


  1. लिवर को स्वस्थ रखने के उपाय

शराब और तंबाकू से दूर रहें

संतुलित आहार लें – हरी सब्जियाँ, फल, दालें, साबुत अनाज

एक्सरसाइज करें – रोज़ाना कम से कम 30 मिनट

पर्याप्त पानी पिएं

जरूरत से ज्यादा दवाइयाँ न लें

हेपेटाइटिस B का टीका लगवाएँ

हाई शुगर और हाई फैट वाले खाद्य पदार्थ कम करें


  1. लिवर फेलियर एक इमरजेंसी है

जब लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है तो इसे लिवर फेलियर कहते हैं।
इसमें तुरंत अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और कई मामलों में लिवर ट्रांसप्लांट ही आखिरी इलाज होता है।
लक्षण:

अत्यधिक थकान और कमजोरी

भ्रम और बेहोशी

खून जमने में दिक्कत

सांस लेने में परेशानी


निष्कर्ष

लिवर हमारे शरीर का “केमिकल फ़ैक्ट्री” है, जो हर दिन चुपचाप मेहनत करता है।
अगर आप स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और शराब से दूरी रखें, तो आपका लिवर लंबे समय तक स्वस्थ रह सकता है।
शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें, और साल में कम से कम एक बार लिवर की जांच जरूर करवाएं।


🥦 लिवर के लिए फायदेमंद देसी सब्जियां

सब्जी फायदा

पालक, मेथी, सरसों का साग एंटीऑक्सीडेंट और आयरन से भरपूर, लिवर की सफाई और खून को शुद्ध करता है।
भिंडी पाचन सुधारती है और लिवर पर फैट जमा होने से बचाती है।
करेला खून से टॉक्सिन हटाता है, लिवर को डिटॉक्स करता है।
टिंडा, लौकी, तोरई हल्की और पचने में आसान, लिवर पर भार कम करती है।
गाजर बीटा-कैरोटीन से भरपूर, लिवर को रिपेयर करने में मदद करता है।
चुकंदर लिवर की सफाई करता है और ब्लड सर्कुलेशन सुधारता है।
ब्रोकोली, पत्ता गोभी डिटॉक्सिफिकेशन एंजाइम बढ़ाती है, फैटी लिवर में लाभकारी।


🍎 लिवर के लिए फायदेमंद देसी फल

फल फायदा

आंवला विटामिन C से भरपूर, लिवर कोशिकाओं को मजबूत करता है।
पपीता पाचन सुधारता है, लिवर की सूजन कम करता है।
सेब पेक्टिन से भरपूर, टॉक्सिन बाहर निकालने में मदद करता है।
नींबू, मौसमी खट्टे फलों का रस लिवर डिटॉक्स में मदद करता है।
तरबूज, खरबूजा पानी से भरपूर, लिवर को हाइड्रेट रखता है।
अनार खून साफ करता है और लिवर की कार्यक्षमता बढ़ाता है।
अंगूर (काले/हरे) एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, लिवर को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है।


🌿 देसी जड़ी-बूटियां और मसाले

जड़ी-बूटी/मसाला फायदा

हल्दी सूजन कम करती है, लिवर को डिटॉक्स करती है।
अदरक पाचन सुधारता है, लिवर की सफाई में मदद करता है।
तुलसी खून को शुद्ध करती है और इम्युनिटी बढ़ाती है।
गिलोय लिवर कोशिकाओं को रिपेयर करती है।
धनिया पत्ती शरीर से भारी धातुएं और टॉक्सिन बाहर निकालती है।
अजवाइन गैस और पाचन की समस्या कम करती है, लिवर को आराम देती है।


“लिवर से जुड़ी 10 जरूरी बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए”

💡 टिप्स:

इन सब्जियों और फलों को कच्चा सलाद, जूस, या हल्का उबालकर खाना ज्यादा फायदेमंद है।

तला-भुना और ज्यादा मसालेदार भोजन कम करें।

रोज़ाना कम से कम 2–3 फल और 2–3 हरी सब्जियों का सेवन करें।

“99% लोग नहीं जानते किडनी का ये राज़”😲

“99% लोग नहीं जानते किडनी का ये राज़“😲 दोस्तो जानेंगे हम इस आर्टिकल में कुछ आश्चर्यचकित करने वाला सच और भी बहुत कुछ।

किडनी क्या है? – एक आश्चर्यचकित करने वाला सच

किडनी सिर्फ एक अंग नहीं, बल्कि आपके शरीर की साइलेंट लाइफसेवर मशीन है।
ये मुट्ठी के आकार की होती है, लेकिन हर दिन 50 गैलन से ज्यादा खून साफ करती है।
किडनी आपके खून से ज़हर, अतिरिक्त पानी और अनचाहे केमिकल निकालकर, शरीर में संतुलन बनाए रखती है।
इतना ही नहीं, ये ब्लड प्रेशर कंट्रोल, हड्डियों को मज़बूत करने और लाल रक्त कोशिकाएँ बनाने में भी मदद करती है।
सबसे हैरानी की बात — अगर एक किडनी खराब भी हो जाए, तो दूसरी चुपचाप पूरी जिम्मेदारी उठा लेती है, बिना आपको तुरंत महसूस हुए।

किडनी खराब होने के लक्षण – विस्तार से आश्चर्यचकित जानकारी

किडनी हमारे शरीर की फ़िल्टर मशीन है, जो हर दिन खून से ज़हर, अतिरिक्त पानी और केमिकल हटाती है। लेकिन जब ये मशीन धीरे-धीरे खराब होने लगती है, तो यह तुरंत तेज़ दर्द या शोर नहीं करती… बल्कि चुपचाप छोटे-छोटे संकेत भेजती है। समस्या ये है कि लोग इन्हें सामान्य थकान या मामूली बीमारी समझकर अनदेखा कर देते हैं। आइए विस्तार से जानें —


  1. आंखों के आसपास सूजन

सुबह उठते ही अगर आपकी आंखों के नीचे फुलाव या सूजन दिखती है, तो ये सिर्फ नींद की कमी नहीं, बल्कि किडनी से प्रोटीन लीक होने का संकेत हो सकता है।
किडनी सही से फ़िल्टर न कर पाए, तो खून में मौजूद प्रोटीन पेशाब के रास्ते निकलने लगता है, जिससे सूजन आ जाती है।


  1. पैरों और टखनों में सूजन

जब किडनी शरीर का अतिरिक्त पानी बाहर नहीं निकाल पाती, तो ये पानी पैरों और टखनों में जमा होकर सूजन बना देता है।
अगर दिन के अंत तक मोज़े का निशान पैरों पर गहरा दिखे, तो यह चेतावनी है।


  1. पेशाब में बदलाव

बार-बार पेशाब आना – खासकर रात में (Nocturia)।

बहुत कम पेशाब आना – पानी कम पीने के बावजूद शरीर में सूजन होना।

पेशाब का रंग बदलना – गहरा पीला, झागदार (प्रोटीन के कारण) या खून की हल्की मिलावट।


  1. लगातार थकान और कमजोरी

किडनी सही से काम न करे, तो खून में टॉक्सिन और अपशिष्ट जमा होने लगते हैं।
साथ ही, ये हार्मोन “एरिथ्रोपोइटिन” कम बनाने लगती है, जिससे लाल रक्त कोशिकाएँ घट जाती हैं और एनीमिया हो जाता है।
परिणाम – हमेशा थकान, चक्कर और ध्यान न लगना।


  1. मुंह में धातु जैसा स्वाद और सांस की बदबू

खून में यूरिया जमा होने पर, यह लार के साथ मिलकर अमोनिया जैसी बदबू देता है और खाने का स्वाद बिगाड़ देता है।
अक्सर मरीज कहते हैं कि “पानी भी कड़वा लगता है।”


  1. त्वचा पर खुजली और रूखापन

किडनी खनिज और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखती है।
जब ये गड़बड़ा जाए, तो खून में फॉस्फोरस और टॉक्सिन बढ़ जाते हैं, जिससे पूरी शरीर में खुजली और त्वचा का सूखापन शुरू हो जाता है।


  1. सांस फूलना और सीने में भारीपन

किडनी फेल होने से शरीर में पानी जमा होकर फेफड़ों तक पहुंच सकता है, जिससे सांस फूलने लगती है।
अगर आपको बिना मेहनत के भी सांस लेने में दिक्कत हो, तो यह चेतावनी है।


सबसे खतरनाक सच्चाई:
किडनी में दर्द सिर्फ तब होता है, जब इंफेक्शन या स्टोन हो।
लेकिन किडनी फेलियर के शुरुआती स्टेज में कोई दर्द नहीं होता, इसलिए इन छोटे-छोटे लक्षणों को अनदेखा करना जानलेवा हो सकता है।


किडनी को कैसे स्वस्थ रखें — “99% लोग नहीं जानते किडनी का ये राज़”😲

किडनी कोई “बैकअप” पार्ट नहीं—ये हर पल खून साफ कर, पानी-खनिज का बैलेंस रखती हैं। अच्छी खबर: रोज़मर्रा की छोटी-छोटी आदतें आपकी किडनी को सालों तक फिट रख सकती हैं।


1) “3 टेस्ट” का नियम — जल्दी पकड़ो, बड़ी मुश्किल टालो

ब्लड प्रेशर नियमित जाँचें।

ब्लड क्रिएटिनिन से eGFR (किडनी की फ़िल्टर क्षमता)।

सुबह की पहली पेशाब में Urine ACR (एल्ब्यूमिन/क्रिएटिनिन रेशियो)—सबसे सटीक शुरुआती स्क्रीनिंग। असामान्य आए तो 3 महीने बाद दोहराएँ ताकि पक्का हो सके।


2) पानी सही, किडनी ख़ुश

पानी आपकी किडनी की “सफाई मशीन” चलाए रखता है। दिनभर थोड़ा-थोड़ा पीएँ; मूत्र का रंग हल्का पुआल-सा रहे, तो हाइड्रेशन ठीक है।

मीठे ड्रिंक्स/एनर्जी ड्रिंक्स की जगह सादा पानी और बिना चीनी वाले पेय चुनें। (दिल/किडनी की बीमारी में “ज़्यादा पानी” भी नुक़सानदेह हो सकता—डॉक्टर से लक्ष्य मात्रा तय करें)।


3) नमक है “साइलेंट किडनी-किलर”

रोज़ का सोडियम < 2 ग्राम (लगभग 5 ग्राम नमक) रखें—छिपा नमक सबसे ज़्यादा पैकेज्ड/प्रोसेस्ड फूड में होता है। लेबल पढ़ने की आदत डालें।


4) दर्द की दवाइयों से सावधान (खासकर OTC)

NSAIDs (जैसे ibuprofen, diclofenac, naproxen, ketorolac) का बार-बार/लंबे समय तक प्रयोग किडनी को चोट पहुँचा सकता है—हाई BP/दिल/किडनी मरीजों में जोखिम और ज्यादा। दर्द में “कुछ भी” खाने से पहले विकल्प/डोज़ पर डॉक्टर से बात करें।


5) डायबिटीज़/हाई BP को कसकर कंट्रोल करें

ये दोनों किडनी ख़राब होने के टॉप-2 कारण हैं।

आपके डॉक्टर किडनी-प्रोटेक्शन के लिए SGLT2 inhibitors जैसी दवाओं पर विचार कर सकते हैं—कई स्टडीज़ में CKD की गति धीमी दिखी है (ख़ुद से शुरू न करें; ये प्रिस्क्रिप्शन दवाएँ हैं)।


6) प्लेट पर “किडनी-स्मार्ट” चुनाव

संतुलित थाली: सब्ज़ियाँ, फल, साबुत अनाज, दाल/अंडा/दूध जैसी मॉडरेट प्रोटीन, हेल्दी फैट।

हाई-प्रोटीन क्रैश डाइट/पाउडर का अतिरेक (खासकर बिना सलाह) न करें—पुरानी किडनी समस्या हो तो डाइटिशियन से प्रोटीन की सही मात्रा तय कराएँ।

नमक-शुगर कम; डीप-फ्राइड/अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड सीमित।

स्टोन-प्रोन लोग: पानी पर्याप्त, नमक कम, चीनी-मीठे पेय कम; कैल्शियम “खाने” से लें, सप्लीमेंट्स पर डॉक्टर की राय लें।


7) लाइफ़स्टाइल 6-पैक (किडनी वर्ज़न)

नियमित व्यायाम (हफ्ते में ≥150 मिनट मध्यम कसरत)।

वज़न हेल्दी रेंज में।

धूम्रपान बंद, अल्कोहल सीमित।

नींद 7–8 घंटे, तनाव प्रबंधन (ध्यान/वॉक/हॉबी)।

वार्षिक हेल्थ चेक-अप और टीकाकरण अपडेट रखें।


8) “किडनी-सेफ़” चेकलिस्ट (भारत की गर्मी/दैनिक जीवन के लिए)

तेज़ गर्मी/यात्रा/वर्कआउट में ओवरहीट/डिहाइड्रेशन से बचें—पानी साथ रखें।

किसी भी कॉन्ट्रास्ट CT/एंजियोग्राफी से पहले डॉक्टर को किडनी/डायबिटीज़/दवाइयों के बारे में बताएँ।

हर्बल/अनब्रेन्ड सप्लीमेंट्स (भारी धातु/अज्ञात जड़ी-बूटी जोखिम) सोच-समझकर, बेहतर है डॉक्टर से पूछकर ही।

बार-बार यूटीआई/पथरी की हिस्ट्री हो तो यूरोलॉजिस्ट/नेफ्रोलॉजिस्ट से प्रोएक्टिव फॉलो-अप रखें।


9) “रेड-फ्लैग” संकेत — देर न करें

बहुत कम/न के बराबर पेशाब,

तेज़ सूजन (चेहरा/टखने),

सांस फूलना/सीने में भारीपन,

खून वाली पेशाब,

तेज़, लगातार उल्टियाँ/कमज़ोरी।
इनमें से कुछ भी हो तो तुरंत चिकित्सा मदद लें। (ये इमरजेंसी हो सकती है।)


10) “1-मिनट रोज़” — मिनी-रूटीन

सुबह वजन + BP नोट करें (अगर मशीन है)।

पानी की बोतल साथ रखें; शाम तक 6–8 बार हल्की रंगत वाला पेशाब हुआ?

पैकेट-फूड लेने से पहले सोडियम देखें।

पेनकिलर लेने से पहले सोचें/पूछें: वाकई ज़रूरत है? NSAID तो नहीं?

महीने में 1 बार “किडनी-चेक” रिमाइंडर सेट करें (टेस्ट/कंसल्ट के लिए)।


याद रखें: ऊपर की बातें सामान्य जागरूकता के लिए हैं; आपकी दवाइयाँ, पानी की मात्रा, प्रोटीन/पोटैशियम/फॉस्फोरस की सीमाएँ—ये सब आपकी रिपोर्ट और स्थिति देखकर डॉक्टर/डाइटिशियन ही तय करते हैं। सही समय पर स्क्रीनिंग और समझदारी भरी रोज़मर्रा आदतें—यही आपकी किडनी की “लाइफ़-इंश्योरेंस” हैं।

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